कर्तव्यविमुखता की पीड़ा

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                                 शाखाएं मुरझा रही थी कुछ समय बाद पत्तियां झड़ने लगी, तना को अफसोस होने लगा कि अब मुझे अपने पत्ते रूपी  श्रृंगार से अलग होना पड़ रहा है । मुरझाई हुई पत्तियां अलगाव से असहज महसूस कर रही थी।
                    तना ने रुदन भरे हृदय से अपने जड़ से कहा - हे प्राणनाथ ! आप से ही मेरा जीवन है, यह कैसी स्थिति आन पड़ी है कि आपकी अर्धांगिनी अब श्रृंगार करने लायक भी ना रही।  मेरे श्रृंगार रूपी पत्तियां फल-फूल मुझसे दूर जा रहे हैं, मैं चाह कर भी उन्हें दूर जाने से नहीं रोक पा रही। कोई उपाय हो तो मुझसे कहें .. जड़ खामोश रहा  निःशब्द व्याकुल प्यासा निराधार!  कुछ समय पश्चात उसने अपनी आपबीती सुनाई और कहा :- महानदी तट के किनारे एक महायज्ञ का शुभारंभ हो रहा था। 
                                               यज्ञ में  महाराजा महारानी एवं उनके राजकुमार के साथ अनेक साधु संत भी मौजूद थे एक दिव्य महात्मा साधु ने महाराजा के परिवार से  राजमहलओं के श्रृंगार का त्याग कर प्राकृतिक श्रृंगार करने को कहा अर्थात सोने-चांदी हीरो के आभूषणों के स्थान पर फूल पत्तों व शाखाओं से समस्त परिवार को श्रृंगार करने को कहा महाराजा के परिवार ने समीपस्थ बगीचे पर जाकर प्राकृतिक श्रृंगार किया।

                                               इस महायज्ञ में राजकुमार की प्रेमिका भी शामिल थी उन्होंने अपने राजमहलों के श्रृंगार तो त्याग कर दिए, किंतु प्रकृतिक श्रृंगार धारण नहीं किया था। तब महात्मा साधु ने उन्हें देखा तो राजकुमारी से विनम्रता से पूछा:- हे राजकन्या आपको प्राकृतिक श्रृंगार से परहेज क्यों है..?  तब राजकुमारी ने सिर झुकाकर शालीनता से उत्तर दिया - हे महात्मन ! मुझे प्रकृति से बहुत प्रेम और लगाव है, मैं स्वयं उत्साहित थी कि आज मुझे इन बोझिल राज महलों के श्रृंगार के स्थान पर प्राकृतिक सिंगार करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। 
               परंतु जब मैं सपरिवार प्राकृतिक श्रृंगार करने बगीचे में पहुंची तो सब ने अपने रुचि के अनुरूप श्रृंगार किया लेकिन मुझे जिस शाखा के पत्ते और फूल पसंद थे, वह अत्यंत जटिल स्थान पर तथा बहुत दूर स्थित है।  सो मैंने उसे हाथ से तोड़ने के बजाय पतली और लंबी लकड़ी से तोड़ने का सहारा लिया । जैसे ही मैंने उस शाखा को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया वह मुझसे दूर जाती रही।  मैंने अनेक बार प्रयास किए किंतु मैं असफल रही । 
                अंततः मैंने उस शाखा के अधिपति "जड़" से हाथ जोड़कर विनती भी की और आग्रह किया कि आपके तनाव शाखा पत्ते और फूलों से मुझे श्रृंगार करना है जिससे महाराजा का जनकल्याण रूपी महायज्ञ सफल हो सके। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे अपनी कुछ शाखाएं एवं पत्तियां सह पुष्प प्रदान करने की कृपा करें।
                साथ ही मैने उनको वचन भी दिया कि आप की शाखा व पत्तियां एवं फूल पुनः आ जाएं, इसके लिए मैं रोज महल से यहां आकर आपको सिंचित करूंगी यह एक राजकुमारी का वचन है। किंतु उसने मेरी एक ना सुनी । 
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तब महात्मा साधु ने कहा कि मुझे उस शाखा तक ले चलो आज्ञानुसार राजकुमारी ने महात्मा साधु को परिवार सहित मेरे पास लेकर आई। जब मैंने उस दिव्य साधु को देखा तो अपने आप मेरे  शाखा सहित तना एवं पुष्प और पत्ते साधु के चरणों में जा गिरी , मैं चाहकर भी अपने अंगों पर नियंत्रण ना रख सका। 
                    साधु सारी बातें समझ चुके थे उन्होंने विनम्रता से मेरे तने और शाखा सहित पत्तियां और पुष्प तोड़कर राजकुमारी को भेंट किया । मैं अपने अंगों की रक्षा ना कर सका , मैं रोने लगा । साधु ने मेरा रुदन सुनकर मुझसे कहा:- हे मूलाधार! रुदन ना करो कुछ समय पश्चात आप की नवीन अंगों की उत्पत्ति होगी। आपने अपने अंगों के मोह के लिए वैश्विक कल्याण हेतु हो रहे महायज्ञ में विघ्न डाला है । जबकि आपको ज्ञात था कि आपको ईश्वर से अनेक नवीन अंगों का वरदान प्राप्त है ईश्वर ने आपको लोक कल्याण में सहभागी बनने और महा यज्ञ को सफल बनाने के उद्देश्य से ही यह वरदान दिया था । आप अपने जन्म का उद्देश्य भूल गए , इसलिए आपने ऐसी गलती की है। 
                    अपनी सुंदर अंगों का दान कर सौभाग्यशाली अनुभव करो कि आप के अंगों से जनकल्याण रूपी महायज्ञ संपन्न हो रहा है। अन्यथा प्रकृति में अनेक ऐसे शाखाएं , वृक्ष व पौधे मौजूद हैं जिन्हें लोग कल्याण के लिए अंगदान का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। महात्मा की बातें सुनकर भी मैं रोता रहा और मन ही मन उन्हें कोसता रहा अंततः उन्होंने मुझे श्राप दिया ।
                   तुझे जन कल्याण में अंगों के दान से खुशी नहीं हो रही तेरे लिए समर्पण का कोई महत्व नहीं तुझे मैं श्राप देता हूं कि जिन अंगों को तू अपना मान कर अभिमान करता है परोपकार से पीछे हटता है उन्हीं अंगों को तू चाह कर भी नहीं बचा पाएगा , तेरे सामने तेरे तने और शाखा बड़े होंगे फूल पत्तियां बड़ी होंगी और अचानक कुछ ही क्षण पश्चात भी मुरझा कर नीचे गिर जाएंगे हर बार तेरे साथ ऐसे ही होता रहेगा। तब जाकर तुझे दूसरों की पीड़ा का आभास होगा। इस श्राप से तू चाहकर भी मुक्त नहीं हो पाएगा।

पार्ट - 2 COMING SOON........


Author
    युगान्त सिन्हा 

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